नई दिल्ली, दिसम्बर 2 -- सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए 1986 में बनाए गए कानून में समानता, गरिमा और स्वायत्तता को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए तथा महिलाओं को होने वाले अनुभवों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि खासकर छोटे शहरों व ग्रामीण इलाकों में अंदरूनी पितृसत्तात्मक भेदभाव अब भी आम है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने इस कानूनी प्रश्न की व्याख्या करते हुए यह टिप्पणी की कि क्या विवाह के समय किसी मुस्लिम महिला के पिता द्वारा उसे या दूल्हे को दी गई वस्तुएं, तलाक के बाद विवाह समाप्त होने पर कानून के अनुसार महिला को वापस की जा सकती हैं। शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने एक महिला के पूर्व पति के पक्ष में फैसला सुनाया था और उसे...