सिमडेगा, नवम्बर 6 -- सिमडेगा कई दशकों से श्री रामरेखा धाम में लग रहे मेले में भी समय के साथ अपना स्वरुप बदला है। कार्तिक पूर्णिमा मेला आते ही पुराने लोगों की यादों में अपने पुराने दिनों का दौर याद आने लगता है। बुजुर्ग टहलु बैगा, लक्ष्मी देवी ने कहा कि अब भी वह दौर ताजा है, जब गांव-गांव से समूह बनाकर श्रद्धालु रामरेखा मेला के लिए निकलते थे। रास्ते भर पारंपरिक वाद्य यंत्र मांदर, ढोलक और नगाड़ा महफिल सजाते थे। पूरे सफर को एक उत्सव की तरह जीते थे। तब मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति का जीवंत उत्सव हुआ करता था। अब वह नज़ारा कहीं खो गया है। वाहनों की रफ्तार ने साइकिलों की धीमी लय को पीछे छोड़ दिया है। श्रद्धालु अब परिवार समेत चार पहिया वाहनों या मोटरसाइकिलों से धाम पहुंचते हैं। रास्ते में गीत-संगीत और नाचगान की जगह अब हॉर्न क...