सासाराम, मई 6 -- समय के साथ सब कुछ बदला, अब न तो डोली नजर आती है और न ही कहार 70 के दशक तक दूल्हा पालकी पर सवार ससुराल तो दुल्हन आती थी पिया के घर नासरीगंज, एक संवाददाता। शादियों का सीजन चल रहा है। समय के साथ बदलते दौर में लोक परंपराएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। इन्हीं लोक परंपराओं में डोली पर सवार होकर दुल्हन के ससुराल जाने की परंपरा भी समाप्त हो रही है। नतीजन शादी विवाह के इस मौसम में न तो कहीं डोली नजर आती है और न उसे ढोने वाले कहार ही नजर आते हैं। अलबत्ता डोली की चर्चा अब केवल फिल्मी गीतों तक ही सीमित रह गई है। डोली, पालकी या महरफा के बारे में नई पीढ़ी जानती तक नहीं है। बदलते दौर में शादी के हाईटेक होने के साथ दुल्हन की विदाई भी हाईटेक हो गई है। डोली की जगह बारात लगाने में बनावटी रथ ने ले ली है। गौरतलब है कि 70 के दशक तक दूल्ह...