गंगापार, अक्टूबर 17 -- दीपावली के लिए बाजारों में बिजली की झालरें और रंगीन लाइटें जगमगा रही हैं। लेकिन इसी रोशनी के बीच मिट्टी के दीयों की मद्धिम लौ जैसे धीरे-धीरे बुझती जा रही है। करछना तहसील के शांति नगर, सेमरी और आसपास के गांवों में कभी हर घर की आंगन से चाक की घूमती आवाज आती थी, अब वहां सन्नाटा है। मिट्टी के दीये, सुराही और कुल्हड़ बनाने वाले कुम्हार अब भी अपनी परंपरा को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शांति नगर के कुम्हार देवी दयाल प्रजापति बताते हैं कि पहले दीपावली से कई दिन पहले हजारों दीयों के ऑर्डर मिलते थे, अब मुश्किल से सैकड़ों बन पाते हैं। मेहनत वही है, पर खरीदार नहीं। मिट्टी की कमी, महंगा ईंधन और बाजार की बेरुखी ने इस पुरातन कला को धीरे-धीरे मिटा दिया है। फिर भी कुछ कारीगर उम्मीद की डोर थामे हुए हैं। वे मानते हैं कि मिट्टी के ...