शामली, अगस्त 11 -- रविवार को शहर के जैन धर्मशाला में 36वें दिन जैन मुनि विव्रत सागर ने प्रवचन करते हुए कहा कि ज्ञानी लोग मानते हैं कि इच्छाएं दुख का कारण हैं और उनका दमन करने से सच्चा सुख मिलता है। वे इस विचार को अपूर्ण मानते हैं क्योंकि मन अपनी प्रकृति से चाह करना बंध नहीं कर सकता। जिस प्रकार नासिका सूंघना बंद नहीं कर सकती, उसी प्रकार मन भी चाह करना बंद नहीं कर सकता। यह मन का स्वभाव है, जो इच्छाओं का मूल स्थान है। उन्होने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि ज्ञानी लोग मन को क्रोध, मान, माया और लोभ का कारण बताते हैं। हालाँकि, मुनिराज कहते हैं कि मन रहित जीव भी इन कषायों का अनुभव करते हैं, जिससे पता चलता है कि मन ही एकमात्र कारण नहीं है। मच्छर के लोभ का उदाहरण दिया गया है, जो बार-बार भगाए जाने पर भी अपना लोभ नहीं छोड़ता और अंततः मर जाता ...