शामली, अगस्त 2 -- शहर के जैन धर्मशाला में मुनि 108 विव्रत सागर ने प्रवचन करते हुए बताया कि जैन कुल में जन्म लेना पूर्व के पुण्योदय का फल है। हालांकि, यह सिर्फ एक शुरुआत है। जीवन में ऊँचाई प्राप्त करने के लिए परिणामों की सरलता और सुलझे हुए भाव आवश्यक हैं। एक सीधी गन्ना आसमान को छू लेता है, जबकि उलझी हुई जलेबी संकुचित रहती है, भले ही दोनों मीठे हों। उन्होने कहा कि जैन कुल सौभाग्य से प्राप्त होता है, लेकिन जैन धर्म का पोषण और अभ्यास करना पड़ता है। केवल जैन कुल में जन्म लेने से सुखद गति या मोक्ष की गारंटी नहीं होती। एक सेठ का उदाहरण दिया जाता है जो जैन कुल में जन्म लेकर भी मेंढक बन गए, क्योंकि उन्होंने परिणामों को नहीं संभाला। मुनिराज बताते हैं कि सच्चे देव, शास्त्र और गुरु के प्रति विपरीत भाव या कपट रखने से नियति और निकाचित कर्म बंधते हैं, जो...