शामली, अगस्त 31 -- शनिवार को शहर के जैन धर्मशाला में दसलक्षण महापर्व के तीसरे दिन मुनि 108 श्री विव्रत सागर ने आर्जव धर्म (सरलता) पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि जीवन को सरल बनाने के लिए मन, वचन और काया में एकरूपता व शुद्धता जरूरी है। जैन मुनि ने कहा कि जीवन जीना आसान है, लेकिन सरल जीवन जीना कठिन है। आजकल लोग दिखावे में जीते हैं, बाहर से कुछ और होते हैं और भीतर से कपट रखते हैं। श्रेष्ठ आचरण वही है जो आंतरिक सरलता से उपजे, न कि केवल दिखावे से। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रावण के तो दस मुख दिखते थे, परंतु आज लोग अपने भीतर कई नकली मुख छिपाकर रखते हैं। एक फोटोग्राफर का दृष्टांत देते हुए कहा कि लोग वास्तविक छवि की बजाय दुनिया को दिखने वाली छवि पर अधिक खर्च करते हैं। यही मायाचारी है, जो जीवन में दुःख का कारण बनती है और मनुष्य को नीच गति की ...