नई दिल्ली, अगस्त 5 -- जीवन के प्रति मनुष्य का स्थिर और निश्चित दृष्टिकोण होना चाहिए। आध्यात्मिक दृष्टि से तो यह और भी आवश्यक है। जीवन दर्शन के प्रति और दर्शन जीवन के प्रति सजग होना चाहिए। जीवन और दर्शन एक-दूसरे से अलग नहीं, उनमें मेल होना चाहिए। जब जीवन और दर्शन में मेल होगा, तभी हम अपने जीवन का सही अर्थ जान पाएंगे। वन भी सबके पास है और दर्शन भी। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं, जिसके पास जीवन हो और दर्शन न हो। परंतु जीवन और दर्शन में मेल होना चाहिए। यदि दर्शन जीवन होता है तो दोनों मिलकर एक प्राण बन जाते हैं।सरल भी और गूढ़ भी प्रश्न है- जीवन क्या है? दर्शन क्या है? यह सरल भी है और गूढ़ भी है। सभी लोग कहते हैं- सुनकर काम करो, देखकर चलो। देखने का सब जगह महत्व है । यदि जीवन न होता, तो शायद देखने की आवश्यकता नहीं होती।बंद आंखों से देखना आदमी...