बेगुसराय, सितम्बर 24 -- बीहट, निज संवाददाता। दिनकर ऐसे हिन्दुस्तान व समाज के पैरोकार थे, जिसमें लोग बराबरी के साथ एक दूसरे से मिलजुल रह सकें। जाति, धर्म व मजहब की दीवार को समतामूलक समाज के लिए सबसे बड़ी बाधा दिनकर मानते थे। बुधवार को दिनकर पुस्तकालय परिसर स्थित दिनकर स्मृति सभागार में राष्ट्रकवि दिनकर के 117वें जयंती समारोह के अंतिम दिनकर और हमारा समय विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के जाने माने स्तम्भकार दिल्ली विश्वविद्यालय के अपूर्वानंद ने ये बातें कहीं। रोचक किस्से के जरिये दिनकर के शोषणविहीन समाज निर्माण के दृष्टिकोण को उन्होंनें रखा। अम्बेदकर विश्वविद्यालय दिल्ली के हिन्दी प्राध्यापक सह लेखक गोपाल जी प्रधान ने कहा कि समावेशन दृष्टि साहित्य का केन्द्रीय तत्व है। कहने का तात्पर्य दिनकर विषमता, जातिवाद व अन्याय की स्थिति में सबको साथ ल...