मुजफ्फरपुर, अक्टूबर 10 -- मुजफ्फरपुर, हिन्दुस्तान टीम। 'चुनाव लड़ने के लिए भी पैसे चाहिए। अभी तक स्वयं दो-ढ़ाई हजार रुपया खर्च कर चुका। अभी इतना और लगेगा। फिर उन बेचारों की कैसी दुर्गति, जिनके पास पर्चे दाखिल करने के लिए भी पैसे नहीं थे। उस दिन ढ़ाई हजार रुपये माहेश्वर बाबू ने दिए तो साथियों के पर्चे दाखिल हो सके। एक तो पैसों की कमी और आपस में भी वैमनस्य। जात-पात भी गजब ढा रहा है। अपने चुनाव क्षेत्र में भी इसे खूब पा रहा हूं...। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा अपनी डायरी में उकेरे ये शब्द आजादी के बाद पहले चुनाव की तस्वीर उकेरते हैं। आजादी के बाद पहले चुनाव में भी पैसे और जातिवाद का जोर था। 1952 के चुनाव में एक तरफ जीप तो दूसरी तरफ बैलगाड़ी और साइकिल से प्रचार होता था। 1951-52 और 57 के चुनाव को लेकर कलम के जादूगर बेनीपुरी की डायरी म...
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