अमरोहा, अक्टूबर 30 -- बीते चार दशक बाद तिगरी व गढ़ गंगा का मेला आमने सामने आया है। गंगा की धार बदलने पर इस बार रेत की जमीन गंगा पार की तरफ चली गई है। इस बार तिगरी में तंबू लगाने वाले श्रद्धालुओं को रेत नहीं मिल सकी है। जिसके चलते युवाओं में उत्साह कम दिखाई दे रहा है। तिगरी गंगा का मेला त्रेतायुग से लगता आ रहा है। बताते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव तिगरी में स्थित एक कुएं पर रुके थे। यहां उन्होंने कौरवों की आत्मा शांति के लिए दीपदान किया था। उस वक्त गढ़ व तिगरी की गंगा एक ही थी। लोग एक स्थान पर ही चार दिन तक तंबू लगाकर रहे थे। तभी से तंबू लगाकर चार दिन गंगा किनारे रहने व स्नान करने की प्रथा चली आ रही है। समय बदलने के साथ ही गंगा की धार अलग-अलग हो गई। गंगा मेले ने भी बड़ा रूप ले लिया। अब यह मेला पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध मेला हो...