वाराणसी, जुलाई 21 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। यह सत्य है कि जब नवगीत जन्मा तो उसे छायावादी गीतों का आधार मिला लेकिन नवगीत का गोत्र, गीत से नहीं मिलता। नवगीत के नामपर जो अराजकता फैली है उसे देखकर यह कहने पर विवश हूं कि नवगीत का गोत्र, कविता से अधिक मिलने लगा है। यह कहना है देश के वरिष्ठ नवगीतकार सुधांशु उपाध्याय का। वह रविवार को ठाकुर प्रसाद नवगीत सम्मान से अलंकृत किए जाने के बाद बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उप्र. हिन्दी संस्थान एवं साहित्यिक संघ की ओर से नागरी नाटक मंडली के ट्रस्ट हॉल में हुए ठाकुर प्रसाद सिंह शताब्दी वर्ष समारोह में प्रयागराज के सुधांशु उपाध्याय ने कहा कि अप्रासंगिक और अतार्किक बातें लिखना ही नवगीत मान लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यही कारण है कि मैं उसे गीत के गोत्र का नहीं मानता। कविता कल भी हवा में थी, आज भी हवा में ह...