छपरा, जून 7 -- छपरा, नगर प्रतिनिधि। मैं गंगा नदी हूं। मुझे कोई जीवनदायिनी कहता है तो कोई मोक्षदायिनी। मेरे दोनों तटों पर बने घाट पर स्नान कर मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। मेरी धारा में डुबकी लगाकर लोग पुण्य कमाते हैं। मेरा जल पवित्र माना जाता है। ¨सचाई का साधन भी मैं हूं, लेकिन समय के साथ स्वार्थी लोगों ने मुझे बदशक्ल कर दिया है। कूड़ा-कचरा व गंदगी मेरी जिंदगी बन गई है। हालात यहां तक पहुंच गया है कि अब मेरे जल को लोग आचमन तक नहीं करते हैं। अतिक्रमण ने मेरे रूप को नाले में तब्दील कर दिया है। मेरी दुर्दशा को बचाने के लिए किसी तारणहार की जरूरत है। यह पीड़ा छपरा शहर से सटे बहने वाली गंगा नदी की है। सारण से होकर बहने वाली नदियों में पानी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले पांच-छह वर्षों से सारण में गर्मियों के दस्तक देने के साथ ही नदियो...