बिजनौर, दिसम्बर 2 -- कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों। कालजयी कवि दुष्यंत की इन लाइनों को जिले के कई दिव्यांग सार्थक कर रहे हैं। हाथों में लकीर और आंखों में रोशनी न होने के बावजूद जिले के इन दिव्यांगों ने अपनी किस्मत गढ़ी और आज लोगों के लिए मिसाल बने हैं। दोनों हाथ चारा मशीन में कट जाने के बावजूद उदयवीर सिंह स्कूल चलाने से लेकर खेती कर रहे हैं। टै्रक्टर चलाना उनके लिए खिलौना चलाने जैसा है। वहीं दोनों हाथ न होने के बावजूद कैलाश वाहनों को तेज रफ्तार से चलाते हैं और आज एक स्कूल में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी कर रहे हैं। नेत्रहीन मुकेश अंधेरे से नहीं डरे और नेत्रहीन विद्यालय में शिक्षक के पद पर रहते हुए आज नौकरी कर लोगों के लिए मिसाल बने हैं। पेश है जिले में ऐसे दिव्यांगों की कहानी।केस नम्बर -1बिना हाथो...