नई दिल्ली, अगस्त 21 -- राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधानसभा से पारित बिलों को मंजूरी देने या फिर लौटाने के लिए 90 दिनों की टाइमलाइन तय करने पर सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प बहस जारी है। राष्ट्रपति की ओर से इस केस में रेफरेंस दाखिल किया गया है और अब अदालत में इस पर बहस चल रही है। गुरुवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए आर्टिकल 200 का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संविधान के इस प्रावधान के अनुसार राज्यपाल की शक्ति व्यापक है और उसके दायरे में यह आता है कि वह अपने विवेक से किसी बिल पर फैसला लें। संवैधानिक और राजनीतिक शिष्टता का पालन करते हुए राज्यपाल फैसला लेते हैं और उसके लिए कोई समयसीमा तय करना गलत है। सरकार का पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति एक संवैधानिक संस्था हैं। इसी तरह अदालत भी संवैधानिक संस्थ...