सुनील पाण्डेय, जून 25 -- Emergency: आपातकाल के 50 बरस बीत चुके हैं। उन दिनों दुख-दर्द सहने वाले लोग तब के जुल्मों-सितम को याद कर आज भी सिहर उठते हैं। ये लोग बताते हैं कि आपातकाल में नागरिकों के सामान्य जीवन जीने के अधिकार ही समाप्त हो गए थे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो गई थी। पुलिस जिसे चाहती उसे कहीं भी गिरफ्तार कर जेल में ठूंस देती। गिरफ्तारी के बाद परिजनों को सूचना तक नहीं दी जा रही थी। जेल में तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। थाने तक यातनागृह में तब्दील हो गए थे। लोगों को पकड़-पकड़कर नसबंदी करा दी जा रही थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सदस्यता खत्म करने के लिए चले केस में लालगंज के निवासी पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पाण्डेय प्रमुख गवाहों में थे। तमाम प्रलोभनों व दबाव के बावजूद वह डिगे नहीं और गवाही दी। इसी गवाही ने उनकी सदस्या खत्म कर द...