कानपुर, अगस्त 7 -- कानपुर, प्रमुख संवाददाता। समय बदला तो हुनरमंदों की किस्मत भी रूठ गई। गम और गुरबत के दौर से निकलने के लिए पुरखों के काम तक को छोड़ना पड़ा। कुछ ऐसी ही दास्तान है सुजातगंज के बुनकर टोली के दरी कारीगरों की। कभी पलकों पर बैठाए जाने वाले बुनकर आज रोजी-रोटी के लिए भी जूझ रहे हैं।कभी इनकी बनाई दरी प्रदेश-देश के काेने-कोने तक पहुंचती थी। सुजातगंज में पीढ़ियों से रहने वाले बुनकरों के पास आज कोई काम नहीं है। रोजी-रोटी और परिवार के पालन पोषण के लिए इनके पास काम ही नहीं है। बुनकर समाज संगठन के रफीक कहते हैं कि काम न होने की वजह जेम पोर्टल में कम रकम में आपूर्ति की शर्त है। उन्होंने बताया कि 2017 तक अच्छा खासा काम मिलता था। अब स्थिति बिल्कुल अलग है। काबिलियत पर सरकारी शर्तें भारी पड़ने से दो हजार परिवारों ने मजबूरी में रोजी-रोटी का द...
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