देहरादून, फरवरी 16 -- सच्चा सुख तो आत्मज्ञान के बिना नही मिल सकता। उसके लिए इन वृतियों का निरोध आवश्यक है। ये निरंतर अभ्यास और वैराग्य से ही सम्भव है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परंतु हे कौन्तेय अभ्यास और वैराग्य से यह वश में होता है कर्म छोड़ना वैराग्य नही है आशक्ति छोड़ना वैराग्य है।उक्त विचार आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने डंगवाल मार्ग नेशविला रोड में मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन की कथा में कहे। उन्होंने कहा कि चित की स्थिरता के लिए बार-बार जो प्रयत्न करता है वही सफल रहता है। मन बड़ा चंचल है यह एक क्षण भी शांत नही रहता। विचारों का प्रवाह ही मन की चंचलता का कारण है। यह प्रवाह में भी चलता रहता है। स्वप्न भी इसी प्रवाह से आते हैं। य...