शामली, नवम्बर 21 -- शुक्रवार को शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 सौरभ सागर मुनिराज का भव्य मंगल प्रवेश हुआ। सकल जैन समाज एवं दिगंबर साधु सेवा समिति के पदाधिकारियों ने आचार्य श्री का स्वागत कर उन्हें श्रीफल अर्पित किया। मंगल प्रवेश के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। उन्होने अपने प्रवचन में कर्मों के प्रभाव और जीवन की नश्वरता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मनुष्य, पशु-पक्षी तथा निर्जीव वस्तुएं भी कर्मों के चक्र से बंधी हैं। पुण्य और पाप के आधार पर ही मनुष्य के जीवन की आयु एवं सुख-दुख का निर्धारण होता है। आचार्य श्री ने आत्महत्या को जैन दर्शन में घोर पाप बताते हुए समझाया कि स्वयं को कष्ट देना अनेक जन्मों तक गर्भ में पलने के दुख का कारण बनता है। पत्थर और मूर्ति का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे एक पत्थर को तराशकर...