ललितपुर, फरवरी 5 -- ललितपुर। जैन अटा मन्दिर में गणाचार्य विरागसागर महाराज के शिष्य नगर गौरव क्षुल्लक विश्वप्रभु सागर महाराज ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा संसार में पाप कोई एक करता है और उसका फल हजारों लाखों लोग भोगते हैं। जैन धर्म को भावना प्रधान धर्म बताते हुए उन्होंने कहा कि धर्मात्मा वहीं जो किया के साथ साथ अपने भावों पर भी ध्यान दे। उन्होंने कहा कि कहीं आप इ्द्रिरय विषयों की प्राप्ति के लिए तो यह कार्य नहीं कर रहे हैं। धर्मात्मा तो वह है जो अन्तरंग श्रद्धा के साथ धार्मिक कियाओं में लगा हो। व्यक्ति धर्मस्थान में रहकर भी अन्त:करण से पाप में लिप्त रहता है। क्रिया तो धार्मिक होती है पर मन उसमें नहीं लगता। यानि व्यक्ति के मोक्षमार्ग को बाधित करता है। ऐसा व्यक्ति संसार के सारे लौकिक कार्य तो बड़े उत्साह से करता है पर जैसे ही धर्म कार्य...