संभल, मार्च 21 -- रमजान में एतिकाफ की फजीलत पर रोशनी डालते हुए जामा मस्जिद दरबार सरायतरीन के इमाम मौलाना मुफ्ती रियाज उल हक कासमी ने बताया कि एतिकाफ में मोताकिफ को 20 रमजान को सुरज छिपने से पहले मस्जिद में आना होता है। रमजान के आखिरी अशरा (दस दिन) को खास अहमियत का बताया, क्योंकि इसमें शबे-कद्र जैसी अजीम रात मौजूद होती है। इसे कुरआन में एक हजार महीनों से बेहतर बताया गया है। रसूलुल्लाह सल्लाहो अलैहे वसल्लम रमजान के आखिरी अशरे में एतिकाफ का खास एहतिमाम फरमाया करते थे। एतिकाफ का मतलब ठहरने और रुकने से है। शरई इस्तिलाह में एतिकाफ का मतलब है कि मुसलमान इबादत की नियत से मस्जिद में कायम करें और दुनियावी मामलों से अलग होकर सिर्फ अल्लाह की रजा के लिए इबादत में मसरूफ हो जाएं। जामा मस्जिद दरबार सरायतरीन के इमाम मौलाना मुफ्ती रियाज उल हक कासमी बताते ह...