सिमडेगा, जून 15 -- सिमडेगा, छोटू बड़ाईक पुर्वज काल से ही मुर्गा लड़ाई आदिवासियों के मनोरंजन का एक हिस्सा रहा है। जिसे स्थानीय आदिवासी अब भी छोड़ना नहीं चाहते हैं। लेकिन अब मुर्गा लड़ाई जुआ खेल के रूप में तेजी से उभरा है। इसका क्रेज भी ग्रामीण इलाकों में काफी अधिक है। हालांकि मुर्गा लड़ाई का कोई खास सीजन नहीं है। पर यहां गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गे लड़ाए जाते हैं। जहां एक मुर्गे में लाखों रुपये तक की बोली लगती है। इसका क्रेज इतना अधिक है कि मुर्गा लड़वाने के शौकीन लोगों की प्रतिष्ठा तक मुर्गे से जुड़ी होती है। अगर उसे कोई मुर्गा पसंद आ जाती है, तो बीस हजार रुपए तक में भी मुर्गा खरीद लेता है। साथ ही मुर्गा को बड़े जतन से ऐसे पालता है जैसे कि वह परिवार का कोई सदस्य हो। मुर्गे को हिंसक बनाने के लिए जंगलों में मिलने वाली जड़ी बूट...