उपाध्याय गुप्तिसागर मुनि, नवम्बर 18 -- एक दिन आश्रमवासी एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा- गुरुदेव! इतने लोग धार्मिक उपासना करते हैं, धर्म चर्चा करते हैं; प्रवचन सुनते हैं, परंतु उनके व्यावहारिक जीवन में कोई ठोस परिवर्तन क्यों नहीं होता? गुरु गंभीर हो गए। कुछ देर बाद आंखें खोलीं; बोले, 'एक काम करो। मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूं, इससे पूर्व तुम मदिरा से भरा एक घड़ा ले आओ।' मदिरा का नाम सुनते ही शिष्य चौंक पड़ा। जिसे स्पर्श करना तो दूर, जिसका नाम भी गुरु आश्रम में वर्जित है, उसे गुरु आज लाने को कह रहे हैं। बात क्या है? मैंने प्रश्न किया रूपांतरण का, गुरुजी उत्तर देंगे मदिरा-घट से। क्या करूं? लाऊं तो आफत; नहीं लाऊं तो गुरु आज्ञा का उल्लंघन। अंतर्द्वंद से जूझते शिष्य को देखकर गुरुजी बोले, 'वत्स! तर्क और विचारों की आवश्यकता नहीं है। आश्वस्त होक...
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