प्रतापगढ़ - कुंडा, अप्रैल 30 -- प्रतापगढ़, संवाददाता। दो से तीन दशक पहले पशुओं की नस्ल के लिए प्रसिद्ध मेले अब आधुनिक चकाचौंध में अतीत बन गए हैं। मेलों के साथ पशुओं की नस्लें भी गायब हो गई हैं। तभी ऊंची कीमत वाले पशु आज गलियों और खेतों में मारे-मारे फिर रहे हैं। मदाफरपुर, संड़वा चंद्रिका, कटरा मेदनीगंज, कटरा गुलाब सिंह, कुंडा के बाबूगंज सहित कई अन्य बाजार कभी पशुओं की नस्ल के लिए प्रसिद्ध हुआ करते थे। इन मेलों में सबसे अधिक मांग आकर्षक बैलों की होती थी। समय बदलने के साथ आधुनिकता की दौड़ में बैल की जरूरत खत्म हो गई। अन्य पशुओं की भी मांग कम हो गई है। ऐसे में पशु मेलों का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो गया। इसके साथ ही मवेशियों की कई नस्लें भी गायब हो गईं। पशुपालन हुआ महंगा, मशीनों पर निर्भर खेती खेती के लिए उपयोग में लाए जाने मवेशियों का पालन ब...
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