आरा, जुलाई 12 -- आरा। शहर के जेल रोड स्थित श्री दिगंबर जैन चंद्रप्रभु मंदिर में चातुर्मास के निमित्त पधारे क्रांतिकारी विचारक परम् पूज्य मुनि श्री 108 विशल्य सागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि आत्म कल्याण पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी है। आत्म कल्याण के लिये परिश्रम तो मनुष्य को स्वयं ही करना पड़ता है, पर सत्संग और सदुपदेश उसके प्रधान अवलम्ब हैं। हमारे कानों को सदुपदेश रूपी सुधा निरन्तर प्राप्त होती ही रहनी चाहिए। मनुष्य का स्वभाव चंचल है। इन्द्रियों की अस्थिरता प्रसिद्ध है। यदि आत्म सुधार में सभी इन्द्रियों को वश में रखा जाय तो उचित है, क्योंकि अवसर पाते ही इनकी प्रवृत्ति पतन की ओर होने लगती है। सदुपदेश वह अंकुश है, जो मनुष्य को कर्त्तव्य पथ पर निरंतर चलते रहने को प्रेरित करता रहता है, सत्य से विचलित होते ही कोई शुभ विचार या स्वर्णसूत्...