शामली, जुलाई 8 -- श्री दिगंबर जैन साधु सेवा समिति शामली एवं सकल जैन समाज शामली द्वारा आयोजित शहर के जैन धर्मशाला में 108 विव्रत सागर मुनिराज ने कहा कि आत्मदर्शन का आईना चेहरा नहीं, मन होता है। हर कोई बार-बार अपना चेहरा शीशे में देखता है, चाहे वह घर में हो या गाड़ी में। मोबाइल स्क्रीन पर हो या किसी चमकती सतह में लेकिन क्या कभी हमने अपने "मन के आईने" में खुद को देखा है। चेहरा देखना आसान है, लेकिन आत्मा का चेहरा तभी दिखता है जब मन स्थिर और स्वच्छ हो। जैसे शांत जल में प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है। राग, द्वेष और कलुषता से भरा मन गंदे पानी की तरह है, जो ना स्थिर रहता है और ना ही सच्चा प्रतिबिंब देता है। इसलिए अपने भीतर झांकें। आंतरिक शुद्धता ही सच्चा दर्शन है। आत्मा का दर्शन तभी संभव है जब मन शांत, स्थिर और पवित्र हो। इस अवसर पर मोहित जैन, भूष...