अयोध्या, नवम्बर 25 -- 'गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न, बंदउंं सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न' अर्थात् जो वाणी और उसके अर्थ तथा जल और जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं, परन्तु वास्तव में अभिन्न (एक) हैं, उन श्री सीतारामजी के चरणों की मैं वंदना करता हूंं जिन्हें दीन-दुःखी बहुत ही प्रिय हैं। गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने मानस की इन पंक्तियों के माध्यम से अयोध्या व मिथिला के सनातन सांस्कृतिक सम्बन्धों को नया आयाम दिया था। यही सनातन सम्बन्ध एक बार फिर अपनी पूरी गरिमा और गौरव के साथ उपस्थित है। अवसर है श्रीसीताराम विवाहोत्सव का। कहने को तो जनकपुर के लिए बारात जा चुकी है। फिर भी संत- श्रद्धालु सभी श्रीअवध में है और यहां जनकपुर की घटना का साक्षात्कार कर रहे हैं अर्थात् अवध भी मिथिला के रंग में पूरी तरह से रंग गयी है और मिथिला में...