श्रुति कक्कड़, सितम्बर 18 -- दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किसी महिला को अनचाहे गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर करना न केवल उसकी पीड़ा को बढ़ाता है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए उसकी गरिमा, निजता और निर्णय लेने की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि एक महिला की गर्भ धारण करने और शारीरिक अखंडता के अधिकार को अन्य सभी पहलुओं पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने एक 30 वर्षीय अविवाहित महिला को अपने 22 सप्ताह से ज्यादा समय के गर्भ को चिकित्सकीय तरीके से गिराने की अनुमति दे दी। महिला का दावा है कि उसके लिव-इन पार्टनर से शादी का झूठा वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाए थे, और इसी कारण वह गर्भवती हो गई थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि इस अनचाही गर्भावस्था के कारण याचिकाकर्ता को गंभीर शारीरि...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.