शामली, सितम्बर 19 -- शामली। शहर के जैन धर्मशाला में मुनि श्री विव्रत सागर का प्रवचन आत्म-ज्ञान के महत्व और प्रभावना के वास्तविक अर्थ पर केंद्रित रहा। मुनिराज ने कहा कि अज्ञानता को दूर कर स्वयं को आत्मा के रूप में पहचानने से ही सच्ची आध्यात्मिक शांति प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने एक कथा के माध्यम से समझाया कि जैसे पारस पत्थर लोहे को तभी सोना बना सकता है जब उस पर जंग न हो, उसी प्रकार गुरु और धर्म (पारस की तरह) तभी आत्मा को लाभ पहुंचा सकते हैं जब भीतर का 'लोहे यानी आत्मा अज्ञान, राग-द्वेष और सांसारिक मोह से मुक्त हो। यदि मनुष्य में अज्ञान का जंग है तो धर्म के सान्निध्य में रहकर भी शांति प्राप्त नहीं की जा सकती। मुनिराज ने स्पष्ट किया कि दुनियावी जानकारी, जैसे सोने-चांदी का भाव, राजनीति या फिल्मों का ज्ञान, वास्तविक ज्ञान नहीं है। सबसे बड़ा ...